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गजल: लगाबऽ दाउ पर पड़ै परान बन्धु

लगाबऽ दाउ पर पड़ै परान बन्धु मनुष बनै तखन सफल महान बन्धु बड़ी कठिनसँ फूल बागमे खिलै छै गुलाब सन बनब कहाँ असान बन्धु जबाब ओकरासँ आइ धरि मिलल नै नयन सवाल केने छल उठान बन्धु हजार साल बीत गेल मौनतामे पढ़ब की आब बाइबल कुरान बन्धु लहास केर ढेरपर के ठाढ़ नै छै कते करब शरीर पर गुमान बन्धु 1212-1212-1212-2 © कुन्दन कुमार कर्ण

जागू जागू सब मैथिल नारी

जागू जागू सब मैथिल नारी जानकी जकाँ बनू महान्
दोसरकेँ संस्कृति नक्कल नै कऽ अपनकेँ राखू मान
अपनो जागू आ सबकेँ जगाउ सुतू नै पीबि कऽ लाजक तारी
घोघ तरसँ बाहर निकलू, बनू एक होसियार मैथिल नारी
बिन बाजने अधिकार नै भेटत नै भेटत कतो कोनो सम्मान
जागू जागू सब मैथिल नारी जानकी जकाँ बनू महान्

बदरी तरकेँ चानसँ नीक स्वतन्त्र दीपकेँ ज्योति बनू
कतेक दिन रहबै अन्हारमे बुद्धिकेँ ताला जल्दी खोलू
बचाउ सोहर समदाओन नै हेरा दियौ लोक गीत
कतो रहू संस्कार नै छोडू तखने हएत मिथिलाकेँ हित
मैथिली लीखू, मैथिली बाजू बढाउ मिथिलाकेँ शान
जागू जागू सब मैथिल नारी जानकी जकाँ बनू महान्

रंग बिरंगी अरिपणसँ मिथिलाकेँ ई धरती सजाउ
दुनियाँ भरिमे मैथिल नारीकेँ अदभूत कला देखाउ
खाली चुल्हा चौकी केनाइ मात्र नै बुझू अपन काम
डेग-डेग पर संघर्ष करु तखने अमर हएत नाम
समय पर नै जागब त किछु नै एत भेटत असान
जागू जागू सब मैथिल नारी जानकी जकाँ बनू महान्

पवित्र कर्मसँ जानकी बनल अछि मिथिलाक विभुति
जँ हुनके बाटपर चलबै तऽ नै आएत कोनो विपति
हुनके जकाँ कर्म कऽ मिथिलामे चेतना कऽ दीप जराउ
चेतनशील भऽ मिथिलामे शिक्षाकेँ ज्योति फैलाउ
मैथलि नारी भेलापर अपना पर फूलि कऽ करु गुमान
जागू जागू सब मैथिल नारी जानकी जकाँ बनू महान्

आरक्षण खोजैसँ नीक खोजू सम्पूर्ण अधिकार
मैथिल नारीकें शोषक सबकेँ जोडसँ करु प्रतिकार
प्रतिकार कए दुनियाँमे मैथिल नारीकेँ शक्ति देखाउ
प्रगति करि सब क्षेत्रमे मिथिलाप्रति भक्ति जगाउ
शिक्षामे आगा बढू नै सहू कतो ककरो अपमान
जागू जागू सब मैथिल नारी, जानकी जकाँ बनू महान्

भगाउ मिथिलासँ अचेतना अशिक्षा आ अज्ञानता
दुनियाँ भरिमे देखाउ मैथिल नारीकेँ महानता
मांगि कऽ केओ नै दैत छीन कऽ लिअ अधिकार
पुरुष उप्पर आश्रित नै भऽ अपने बनाउ अपन संसार
अपन संसार अपने बना कऽ चढू सफलताकेँ विमान
जागू जागू सब मैथिल नारी जानकी जकाँ बनू महान्

© कुन्दन कुमार कर्ण



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