सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

दिसंबर, 2018 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

विशेष

गजल: लगाबऽ दाउ पर पड़ै परान बन्धु

लगाबऽ दाउ पर पड़ै परान बन्धु मनुष बनै तखन सफल महान बन्धु बड़ी कठिनसँ फूल बागमे खिलै छै गुलाब सन बनब कहाँ असान बन्धु जबाब ओकरासँ आइ धरि मिलल नै नयन सवाल केने छल उठान बन्धु हजार साल बीत गेल मौनतामे पढ़ब की आब बाइबल कुरान बन्धु लहास केर ढेरपर के ठाढ़ नै छै कते करब शरीर पर गुमान बन्धु 1212-1212-1212-2 © कुन्दन कुमार कर्ण

गजल

मालूम नै छल तोहर नैना चितचोर गे जहियासँ मिललै धरकन मारै हिलकोर गे अदहन सिनेहक जे चाहक चूल्हापर चढ़ल खदकल हियामे अगबे मिलनक इनहोर गे रूमीक कविता सन मार्मिक तुकबन्दी जकाँ दुनियाँक कोनो कवि लग नै तोहर तोड़ गे शीशा जकाँ आखर आ पानी सन भाव छै कहलहुँ गजल तोरे नाँओ भोरे भोर गे बस एक तोरे आगू कोमल बनि जाइ छी चलतै हमर जिनगीपर की ककरो जोर गे लुत्ती सुनगि गेलै प्रेमक अगहन मासमे बैशाख धरि हेबे टा करतै मटिकोर गे दोसर नजरिके कुन्दन सोहाइत आब नै चाहे रहै कारी या अछि केओ गोर गे 221-222-222-2212 © कुन्दन कुमार कर्ण