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जुलाई, 2021 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

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गजल: लगाबऽ दाउ पर पड़ै परान बन्धु

लगाबऽ दाउ पर पड़ै परान बन्धु मनुष बनै तखन सफल महान बन्धु बड़ी कठिनसँ फूल बागमे खिलै छै गुलाब सन बनब कहाँ असान बन्धु जबाब ओकरासँ आइ धरि मिलल नै नयन सवाल केने छल उठान बन्धु हजार साल बीत गेल मौनतामे पढ़ब की आब बाइबल कुरान बन्धु लहास केर ढेरपर के ठाढ़ नै छै कते करब शरीर पर गुमान बन्धु 1212-1212-1212-2 © कुन्दन कुमार कर्ण

परिपक्व होइत मैथिली गजल: समीक्षा

ई कहब से कोनो अतिशयोक्ति नहिं जे 'मैथिली गजल' किछु साल पूर्व टिकुले रहए आइ बेस कोशा बनि तैयार भ ऽ  रहल छैक फल देबा लेल, तहियो में जँ सहजता पूर्वक मैथिलीक अपन गजलशाश्त्र भेटि जाए अन्चिनहार आखरक रूपमे तखन गजल लेल बेसी मेहनति क ऽ  खगते नहिं रहि जाइत छैक ।  अन्चिनहार आखरक रूपमे ई एकटा एहेन गजलशाश्त्र भेटल अछि जे मैथिली गजलकेँ अरबी, फारसी ओ उर्दू गजलक समकक्ष पहुँचेबामे समर्थ सिद्ध भ ऽ  रहल अछि। मैथिली गजलक एकटा सुप्र सिद्ध नाम जे भारत सँ ल ऽ  क ऽ  नेपाल धरि अपन गजलसँ श्रोताक माँझ एकटा भिन्न छाप छोड़निहार गजलकार श्री 'कुन्दन कुमार कर्ण' जी केँ किछु गजल- kundangajal.com केर माध्यम सँ आ किछु हुनक फेसबुकक भीतसँ पढ़बाक मौका भेटैत रहैत अछि जे हमरा लेल सौभाग्यक गप्प छै ।  हुनक किछु गजल पर हम अपन विचार राखि रहल छी । 12 मई 2020 क ऽ  एकटा बाल गजल जे शाइरक अपन वेवसाईटपर प्रेशित कएल गेल छन्हिं जे निम्नलिखित अछिः हमर सुन्नर गाम छै  फरल ओत' आम छै  विपतिमे संसार यौ  प्रकृति जेना बाम छै  निकलि बाहर जाउ नै  बिमारी सभ ठाम छै  सफा आ स्वस्थ्य...

गजल सम्बन्धी प्राय: पूछल जाइवला प्रश्न आ तकर उत्तर (FAQ)

गजल की छै ? बहरमे कहल किछु शेर छै । बहर की छै ? पाँतिक एक समान मात्राक्रम बहर छै । शेरमे की छै ? बहरमे दू पाँति छै । Ghazal: FAQ दू पाँतिमे की छै ? पहिल मतला अंतिम मकता आ बीच बला आन शेर छै । मतलामे की छै ? मतलाक दूनू पाँतिमे काफिया आ रदीफ छै । काफिया की छै ? काफिया तुकांत छै । रदीफ की छै ? कोनो पाँतिक अंतिम उभयनिष्ठ रदीफ छै । मकता की छै ? मकता गजलक अंतिम शेर छै जाहिमे लोक अपन नाम लीखै छै । इएह गजल छै । (आशीष अनचिन्हार)

गजल आ गीतमे अन्तर की छै ?

गजल आ गीत मे अंतर की छै? मात्र एक अक्षर के । गीत आ गजल दूनू गाओल जाइ छै । जँ ध्वनीक तुक {राइम्स } सभ पाँति मे मिलैत रहत त' गीत वा गजल दूनू सुनै मेँ बेशी नीक लागै छै । मुदा गीत मे राइम्स नहियो हेतै त' चलतै मुदा गजल मेँ प्राय: पाँति संख्याँ 1 ,2,आ तकरा वाद 4 ,6 , 8 , 10 . . . मे हेवाक चाही । गीत मे कतेको पाँति के बाद फेर सँ मुखरा दोहराओल जाइ छै मुदा गजल मे प्राय: तुकान्त वाला पाँति बाद कहल जाइ छै । गजल कम सँ कम 10 टा पाँतिक होइ छै जकरा 2-2 पाँति के रूप मे बाँटि क शेर कहल जाइ छै । । जहिना गीतक शास्त्र व्याकरण होइ छै{सा रे ग . . .} तहिना गजलक व्याकरण होइ छै । जहिना शास्त्रीय गायण मे राग होइ छै तहिना गजल मे बहर होइ छै । जहिना गीत कोनो ने कोनो ताल . राग . मे होइ छै तहिना गजल कोनो ने कोनो बहर मे होइ छै । । आब कहू गीत आ गजल मे अंतर की? नवका गायक त' गीतक टाँग -हाथ तोड़ि क' गाबै छथि । दू तीन टा शब्द के एकै साथ जोड़ि क' गाबैत छथि बूझू जे फेविकाँल सँ साटि देने होइ । जहिना गीत मे कोनो तरहक चिन्हक {कोमा ,फूल स्टाँप , आदि} के मोजरे नै दै छथि । ओहिना गजल मे कोना पाँति मे कोनो चिन्ह...

गजल विधापर दीग्भ्रमित साहित्यकार: एक टिप्पणी

'हेलो‌ मिथिला' फेसबुक समूहपर फेसबुक लाईवमे सियाराम झा 'सरस' आ धीरेन्द्र प्रेमर्षि कऽ बीच भेल गजल सम्बन्धी संवादपर आशीष अनचिन्हारद्वारा फेसबुक पोष्टक माध्यमसँ कएल गेल टिप्पणी: काल्हि 10 जुलाई 2021 केँ एकटा फेसबुक लाइभ Dhirendra Premarshi धीरेन्द्र प्रेमर्षि एवं Siyaram Saras सियाराम झा सरसजीक बीच भेल जाहिमे बहुत मुद्दाक संग गजलोपर बात भेल आ ओ दूनू गोटे गजल विधापर बहुत रास भ्रमपूर्ण बयान सभ दैत रहलाह । ओना तँ हम सीधे कहि सकैत छलहुँ जे सियाराम झा सरसजीकेँ जे भ्रम छै तकर उत्तर हम अपन पोथी "मैथिली गजलक व्याकरण ओ इतिहास"मे लीखि देने छियै तँइ ओकरा पढ़ि लिअ । मुदा हमरा बूझल अछि जे सरसजी पूरा जीवनमे अध्ययन कम आ विद्यापति समारोह एवं अन्य मंचपर भाग बेसी लेलाह अछि । तेनाहिते प्रेमर्षिजीक पूरा समय नवयुवाकेँ भ्रमति करएमे आ मंचपर माइक पकड़एमे जाइत छनि तँइ हुनको वशमे अध्ययन नै छनि । तँइ ओइ बातचीतक किछु भ्रम आ ओकर उत्तर (जे कि हम अपन पोथीमे दऽ देने छी) एहि ठाम दऽ रहल छी । उम्मेद अछि जे धीरेन्द्रजी हमर एहि लिखलकेँ सरसजी धरि पहुँचेता जाहिसँ हुनकर भ्रमक निराकरण भऽ सकनि । ओना...

थोड़े माटि बेसी पानि

शताब्दीसँ बेसीक इतिहास रहल मैथिली गजलके खास क' पछिला एक दशकसँ गजल रचना आ संग्रहक प्रकाशनमे गुणात्मक आ परिमाणात्म दुन्नू हिसाबे वृद्धि भ' रहल छै । एहि क्रममे किछु संग्रह इतिहास रचि पाठक सभक हियामे छाप छोडि देलकै तँ किछु एखनो धरि नेङराइते छै । कारण सृजनकालमे कोनो नै कोनो अंगविहिन रहि गेलै सृजना । संग्रहक भीड़मे समाहित सियाराम झा 'सरस' जीक पोथी 'थोड़े आगि थोड़े पानि' पढबाक अवसर भेटल । जकरा सुरुसँ अन्त धरि पढलाकबाद एकर तीत/मीठ पक्ष अर्थात गुणात्मकताक सन्दर्भमे विहंगम दृष्टिसँ अपन दृष्टिकोण रखबाक मोन भ' गेल । पहिने प्रस्तुत अछि पोथीके छोटछिन जानकारी: पोथी - थोड़े आगि थोड़े पानि विधा - गजल प्रकाशक - नवारम्भ, पटना (2008) मुद्रक - सरस्वती प्रेस, पटना गजल संख्या - 80टा सियाराम झा 'सरस' पोथीमे जे छै- थोड़े आगि राखू थोड़े पानि राखू बख्त आ जरुरी लै थोड़े आनि राखू (पूरा गजल पृष्ठ 85 मे) सरस जी प्रारम्भिक पृष्ठमे गहिरगर भावसँ भरल ई शेर प्रस्तुत केने छथि जे कि पोथीके नामक सान्दर्भिकता साबित क' रहल छै । पोथीमे 'बहुत महत्व राखैछ प्रतिबद्धता' शीर्षकपर द...