लगाबऽ दाउ पर पड़ै परान बन्धु मनुष बनै तखन सफल महान बन्धु बड़ी कठिनसँ फूल बागमे खिलै छै गुलाब सन बनब कहाँ असान बन्धु जबाब ओकरासँ आइ धरि मिलल नै नयन सवाल केने छल उठान बन्धु हजार साल बीत गेल मौनतामे पढ़ब की आब बाइबल कुरान बन्धु लहास केर ढेरपर के ठाढ़ नै छै कते करब शरीर पर गुमान बन्धु 1212-1212-1212-2 © कुन्दन कुमार कर्ण
ई कहब से कोनो अतिशयोक्ति नहिं जे 'मैथिली गजल' किछु साल पूर्व टिकुले रहए आइ बेस कोशा बनि तैयार भऽ रहल छैक फल देबा लेल, तहियो में जँ सहजता पूर्वक मैथिलीक अपन गजलशाश्त्र भेटि जाए अन्चिनहार आखरक रूपमे तखन गजल लेल बेसी मेहनति कऽ खगते नहिं रहि जाइत छैक ।
अन्चिनहार आखरक रूपमे ई एकटा एहेन गजलशाश्त्र भेटल अछि जे मैथिली गजलकेँ अरबी, फारसी ओ उर्दू गजलक समकक्ष पहुँचेबामे समर्थ सिद्ध भऽ रहल अछि। मैथिली गजलक एकटा सुप्रसिद्ध नाम जे भारतसँ लऽ कऽ नेपाल धरि अपन गजलसँ श्रोताक माँझ एकटा भिन्न छाप छोड़निहार गजलकार श्री 'कुन्दन कुमार कर्ण' जी केँ किछु गजल- kundangajal.com केर माध्यम सँ आ किछु हुनक फेसबुकक भीतसँ पढ़बाक मौका भेटैत रहैत अछि जे हमरा लेल सौभाग्यक गप्प छै ।
हुनक किछु गजल पर हम अपन विचार राखि रहल छी । 12 मई 2020 कऽ एकटा बाल गजल जे शाइरक अपन वेवसाईटपर प्रेशित कएल गेल छन्हिं जे निम्नलिखित अछिः
हमर सुन्नर गाम छै
फरल ओत' आम छै
विपतिमे संसार यौ
प्रकृति जेना बाम छै
निकलि बाहर जाउ नै
बिमारी सभ ठाम छै
सफा आ स्वस्थ्य रहब
तखन कोनो काम छै
जनककें सन्तान हम
जनकपुर सन धाम छै
अयोध्या छै घर जकर
तकर नाओ राम छै
अहि गजलक बहर-1222-212 छैक । अहि गजलक मतला देखू शाइर जेना बालपनमे डूबि अपन गामक वर्णन करैत अपन सखा, मित्रसँ कहि रहल हो सोझे बाल्यावस्थामे पहुँचा रहल अछि हिनक ई मतला
"हमर सुन्नर गाम छै
फरल ओत' आम छै" - तकर तुरंते बाद जखन आगू सभ पहिल शेर देखै छी त थोड़ेक असहजता भेल तैयो शेर पर विमर्श करैत छी आगूक शेर देखू-
विपतिमे संसार यौ
प्रकृति जेना बाम छै- जँ शाइर शिर्षक 'बाल गजल' देलखिन्ह तऽ सभ शेर मतला सहित 'बाल' बोधपर केंद्रित हेबाक चाही नै कि कोनो एहेन जे बच्चा लेल असहज होय बूझै लेल,कियाक तऽ बच्चा कऽ विपति केर ज्ञान नै रहैत छै शेर स्वतंत्र भाव दए ई थोड़े अखड़ल आ जँ शेर स्वतंत्र रखबाक रहैन्ह तऽ शीर्षकमे 'बाल' नै दऽ सोझे 'गजल' देबाक चाही । दोसर ठाम बहरक त्रुटी सेहो अभरल अछि मतलाक सानीमे 'फरल ओ/तs आम छै' 122/1212 जखन की हिनक गजलक बहर 1222/212 पर केंद्रित छन्हिं ।
आब चलै छी दोसर गजल दिसः 25/11/2013
धधरा नेहक हियामें धधकैत रहि गेलै
बनि शोणित नोर आँखिसँ टपकैत रहि गेलै
बेगरता बुझि सकल केओ नै जरल मोनक
धड़कन दिन राति जोरसँ धरकैत रहि गेलै
ऐबे करतै सजिक मोनक मीत जिनगीमें
सभ दिन ई आँखि खन-खन फरकैत रहि गेलै
दाबिक सभ बात मोनक कुन्दन
जबरदस्ती जगमें बनि फूल गमकैत रहि गेलै
मात्राक्रम-2222-122-221-222 अहि गजलक मतला सुन्दर अछि । पहिल शेरमे 'बेगरता' आ 'जरल मोन' किछु ओतेक नीक सम्प्रेषण नहिं बुझा रहल बेगरता लग 'क्यो दुखड़ा' देलासँ हमरा नजरिमे बेसी नीक लगतै आ मात्राक निर्वहन सेहो भऽ रहल छै । चलू जे किछु आगू देखैछी 'ऐबे' वा 'एबै'? आऔर एकठाम आँखि 'खन-खन' लग 'फर-फर' बेसी नीक हेतए ।
अहि गजलक मक्ता (भावपूर्ण) बड्ड बेसी नीक लागल ।
चलाकक शहरमे चलाकीक विधि जानि लेलौं
गजब भेल चालनिसँ हम पानि जे छानि लेलौं
बहुत दिन सँ खोजैत रहियै अपन शत्रुके हम
अचानक नजरि ऐना पर गेल पहिचानि लेलौं
मिला देत ओ माटिमे ओ हमरा धमकी दऽ गेलै
जनमि गाछ छू लेब हमहूँ गगन ठानि लेलौं
कते साक्ष्य प्रस्तुत करू आर प्रेमक परखमे
अहाँ केर पाथर हिया देवता मानि लेलौं
कलीके खिलल देखि बचपन पड़ल मोन काइल
भसाबैत निर्मालके देखिते आइ हम कानि लेलौं
विरहमे किए मित्र जिनगी बितेबै अनेरो
पहिल छोड़ि गेलै त की दोसरो आनि लेलौं
अलग बात छै ई जे हम होशमे नै छी 'कुन्दन'
भले लड़खड़ाइत अपन ठाम ठेकानि लेलौं
मात्राक्रम-122-122-122-122-122 (बहरे मुतकारिब मोअश्शर सालिम) हिनक बहुत रास गजलमे हमर प्रिय गजल अछि तकर कारण सभ शेर कम्मालक छै ।
जेना:
बहुत दिन सँ खोजैत रहियै अपन शत्रुके
हम अचानक नजरि एना पर गेल पहिचानि लेलौं - ई शेर, शेर नहिं सवा शेर छैक ।
तहिना ई शेर देखल जाउ-:
मिला देत ओ माटिमे ओ हमरा धमकी दऽ गेलै
जनमि गाछ छू लेब हमहूँ गगन ठानि लेलौं - कम शब्दमे बहुत रास बात कहि रहल अछि सभ शेर । ई गजल मनभावन लागल । थोड़ेक हिन्दियैल सन सेहो ! 'खोजैत'कें ठाम अपना लग 'ताकैत' सन सुन्दर शब्द छै त हिन्दीक प्रयोग ठीक नहिं,(ओना नेपाल दिस स्थानीय भाषाक वर्तनी भऽ सकैछ धरि हमरा नै बूझल अछि) हिनक अधिकांश गजलमे 'मक्ता' बड्ड मजगूत रहैत छन्हिं से बारम्बार देखल गेल अछि । आब यैह गजलक मक्ता देखूः
अलग बात छै ई जे हम होशमे नै छी 'कुन्दन'
भले लड़खड़ाइत अपन ठाम ठेकानि लेलौं
अंतमे यैह कहब जे, जे ई बूझै छथि जे मैथिलीमे गजल नै भऽ सकैत छै वा ओ बात नै आबि रहल शेर सभमे से लोकनिकेँ कुन्दन जीक गजल पढ़बाक चाही आ गुणबाक चाही । स्तरीय गजलक भण्डार सहेजि रखने छथि । हुनका बहुत धन्यवाद। हमर समीक्षाक मादे ई पहिल प्रयास अछि त्रुटी हेबे करतै से देखाओल जाए जाहिसँ हम अपनामे सेहो सुधार कऽ सकी। धन्यवाद ।
लेखक - अभिलाष ठाकुर
स्वागत छनि Abhilash Thakur केँ समीक्षाक क्षेत्रमे। ई रचना कए हद धरि पाठकीय प्रतिक्रिया अछि मुदा समीक्षा वा कि आलोचना लेल पहिल सीढ़ी। उममेद अछि जे भविष्यमे ई नीक समीक्षा-आलोचना लिखताह।
जवाब देंहटाएंसमीक्षाक नीक प्रयास।
जवाब देंहटाएंआद्योपांत पढ़लहुँ । सराहनीय प्रयास अछि। एकएक टा पाँति पर अहाँक प्रतिक्रिया नीक लागल। एहि तरहक पाठकीय प्रतिक्रिया वा समीक्षाक गजलकेँ शीर्ष पर पहुँचएबाक हेतु बेस खगता छैक। नव नव गजल लिखिनिहार लेल एकर उपयोगिता सेहो उत्तम रहतैक। साधुवाद
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद
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