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गजल: लगाबऽ दाउ पर पड़ै परान बन्धु

लगाबऽ दाउ पर पड़ै परान बन्धु मनुष बनै तखन सफल महान बन्धु बड़ी कठिनसँ फूल बागमे खिलै छै गुलाब सन बनब कहाँ असान बन्धु जबाब ओकरासँ आइ धरि मिलल नै नयन सवाल केने छल उठान बन्धु हजार साल बीत गेल मौनतामे पढ़ब की आब बाइबल कुरान बन्धु लहास केर ढेरपर के ठाढ़ नै छै कते करब शरीर पर गुमान बन्धु 1212-1212-1212-2 © कुन्दन कुमार कर्ण

प्रदेश-2 में फिर उपजा भाषा विवाद (हिन्दी अनुवाद)

केंद्र में सरकार बदलने से प्रदेश 2 भी अछूता नहीं रहा। परिणामस्वरूप, एक मंत्री और एक राज्य मंत्री के साथ नेकपा माओवादी (केंद्र) भी सरकार में शामिल हो गयी। माओवादी केंद्र की ओर से भरत साह ने आंतरिक मामला और संचार मंत्री के रूप में शपथ ली और रूबी कर्ण ने उसी मंत्रालय में राज्य मंत्री के रूप में शपथ ली।

इससे पहले दोनों मंत्रियों ने अपनी मातृभाषा मैथिली में शपथ लेने का स्टैंड लिया था। पद की शपथ लेने के तुरंत बाद उन्होंने अफसोस जताया कि कानून में कमी के कारण वे अपनी मातृभाषा मैथिली में शपथ नहीं ले सके और कहा कि शपथ की भाषा पर असहमति के कारण शपथ ग्रहण समारोह में देरी हुई। लेकिन शपथ लेने के तुरंत बाद उन्होंने मातृभाषा में शपथ लेने पर अध्यादेश लाने की प्रतिबद्धता भी जताई।

दोपहर तीन बजे दोनों मंत्रियों का शपथ ग्रहण होना था। लेकिन भाषा विवाद के चलते यह कार्यक्रम दोपहर 4 बजे शुरू हो सका। इनलोगों ने मैथिली भाषा में लिखा एक प्रतीकात्मक शपथ पत्र भी प्रदेश 2 के प्रमुख राजेश झा को सौंपा था।

मातृभाषा मैथिली के प्रति प्रेम और स्नेह को लेकर प्रदेश 2 में चर्चा में आए मंत्री साह ने एक सप्ताह पहले एक कार्यक्रम में विवादास्पद बयान देते हुए कहा था कि मैथिली एक विशेष जाति की एकमात्र भाषा है और प्रदेश में ब्राह्मण और कायस्थ समुदाय का कुछ प्रतिशत ही मैथिली भाषा बोलते हैं जबकि सूबे में मगही भाषा सबसे ज्यादा बोली जाती है। 
 
विरोध, बचाव और बहस

प्रदेश 2 के आन्तरिक मामला तथा संचार मंत्री भरत साह के द्वारा दिए गए उक्त विवादास्पद बयान के विरोध में राज्य के विभिन्न संगठनों ने मुख्यमंत्री लाल बाबू राउत को एक ज्ञापन सौंपा। इनलोगों ने मंत्री साह द्वारा दिए गए विवादास्पद बयान की निंदा करते हुए कहा कि जनगणना के आधिकारिक दस्तावेज के मुताबिक मैथिली नेपाल में दूसरी सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है। मंत्री साह को यह तथ्य समझना चाहिए। मैथिली भाषाशास्त्री, बुद्धिजीवि तथा मैथिली अनुयायी संघ संस्थाओं ने मंत्री साह को सार्वजनिक रूप में चुनौती देते हुए कहा कि उनके द्वारा दिए गए बयान को वह प्रमाणित करें।

इतना ही नहीं सोशल मीडिया पर भी मंत्री साह के बयान का कड़ा विरोध किया गया। कुछ ने मंत्री साह पर मैथिली भाषा के खिलाफ तथ्यहीन, निराधार, काल्पनिक और गैर जिम्मेदाराना बयान देने का आरोप लगाया और मैथिली भाषियों से माफी की मांग की।
 
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संघ-संस्थाओं द्वारा दिए गए ज्ञापन को स्वीकारते हुए प्रदेश 2 के मुख्यमंत्री लाल बाबू राउत ने कहा कि मैथिली भाषा के बारे में मंत्री साह द्वारा दिया गया बयान उनकी निजी राय हो सकती है। उन्होंने कहा, ‘‘मैथिली के बारे में उनका बयान निजी हो सकता है। उनका बयान प्रदेश- 2 की सरकार की नहीं है।’’ मुख्यमंत्री राउत ने अपनी सरकार का बचाव करते हुए स्वीकार किया कि राज्य की कामकाजी भाषा निर्धारित करने में बहुत देर हो चुकी है और कहा कि जल्द ही निर्णय लिया जाएगा। उन्होंने संगठनों के प्रतिनिधियों को आश्वासन दिया कि जल्द से जल्द प्रदेश प्रज्ञा प्रतिष्ठान की स्थापना की प्रक्रिया में तेजी लाई जाएगी। इस प्रकार मुख्यमंत्री ने उपजी परिस्थितियां को सामान्य करने की कोशिश की।

इस प्रकार, मंत्री के विवादास्पद बयान के विरोध और बचाव के बीच यह बहस दूसरी ओर मुड़ती दिखाई पड़ रही है। सोशल मीडिया पर, कुछ उपयोगकर्ताओं ने मैथिली भाषा पर एकाधिकार रखने और मिथिला में अन्य जातियों द्वारा बोली जाने वाली मैथिली प्रेम को कम आंकने के लिए ब्राह्मण समुदाय की आलोचना की। आलोचकों का तो यहाँ तक कहना है कि मिथिला का ब्राह्मण और कायस्थ के अलावा अन्य जातियों द्वारा बोली जाने वाली भाषा मैथिली के अलावा एक और भाषा है और इसका नाम बदला जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि मैथिली संगठनों में केवल ब्राह्मण जाति के प्रतिनिधि ही अधिक हैं। कक्षा एक से दस तक के स्कूली पाठ्यक्रम और मैथिली पाठ्यपुस्तकों में अधिकांश ब्राह्मण साहित्यकारों और लेखकों के केवल निबंध समावेश हैं। मिथिला के अन्य जाति के विभुतियों के बारे में नहीं पढ़ाया जाता है। केवल कुछ जातियां ही मैथिली भाषा के नाम पर उपलब्ध सुविधाओं का उपयोग करती हैं। मैथिली साहित्य पुरस्कार भी असमान रूप से दिए जाते हैं। दूसरे शब्दों में, विभिन्न आरोप लगाए गए कि मैथिली भाषा में एक-जातीय एकाधिकार है और मैथिली अब तक समावेशी नहीं रही है।

इन आरोपों का विरोध करते हुए, कुछ मैथिली अनुयायियों और बुद्धिजीवियों ने कहा कि राज्य द्वारा नेपाल में एकल भाषा और संस्कृति को लागू करने की नीयत से जनगणना में मैथिली भाषा का कम प्रतिशत दिखाने के लिए मगही, अंगिका और बज्जिका को षड्यंत्रपूर्वक उल्लेेखित किया गया था। उन्होंने कहा, ‘‘उत्तर प्रदेश में बोली जाने वाली हिंदी और दिल्ली में बोली जाने वाली हिंदी में अंतर है। संयुक्त राज्य अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, इटली, चीन और भारत में बोली जाने वाली अंग्रेजी के स्वर में अंतर है।’’ पश्चिमी और पूर्वी नेपाल के नेपाली भाषियों के बीच नेपाली बोलने में कुछ अंतर है। इसी प्रकार रौतहट में बोली जाने वाली भोजपुरी और परसा में बोली जाने वाली भोजपुरी में अंतर है। इस प्रकार कुछ दूरी पर भाषा के अंतर के कारण भाषा का नाम नहीं बदलता है। इसलिए, उन्होंने तर्क दिया कि नेपाली मिथिलांचल क्षेत्र में अंगिका, बज्जिका और मगही में बोली जाने वालीएक अलग भाषा नहीं बल्कि मैथिली ही है।

कुछ लेखकों ने निराशा व्यक्त करते हुए कहा कि ‘‘मैथिली में किसी को कोई पुरस्कार नहीं मिला, इसके संघ-संगठनों में कोई पद नहीं मिल सका, इसी कारण से वे अपना आक्रोश व्यक्त करने के लिए मैथिली भाषा का नाम दूसरे नाम से रख रहे हैं।’’ इसी तरह, सोशल मीडिया पर युवकों ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि मधेश केंद्रित राजनीतिक दलों के पास वर्तमान में प्रदेश 2 में राजनीति के लिए कोई एजेंडा नहीं है और निकट भविष्य में चुनाव होने के कारण, एक दूसरे से लडा़ने के लिए यह भाषा विवाद जानबूझकर स्थापित किया गया है। इनलोगांे ने कहा कि हर भाषा का एक निश्चित क्षेत्र होता है जो समय के साथ बदल सकता है। इन क्षेत्रों में रहने वाली विभिन्न जातियों के बीच स्वर यानि टोन में भी अंतर पाया जा सकता है। मैथिली में भी ऐसा ही हुआ है। नेपाली भाषा में नेपाल के शाही परिवार के लिए कुछ विशेष शब्दों का प्रयोग किया जाता है। यह तर्क दिया गया कि उनका उपयोग दूसरों के लिए नहीं किया गया था।

प्रदेश 2 सरकार के मंत्री के बयान से लोगों के बीच भाषा संबंधी मुद्दे अचानक उठ खड़े हुए हैं। कई लोग इस विवाद को अलग-अलग कोणों से देख रहे हैं और विश्लेषण कर रहे हैं। भाषाविदों और मैथिली लेखकों ने आशंका और चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि प्रदेश 2 की सरकार में मधेश-केंद्रित राजनीतिक दलों ने स्थानीय भाषा की अनदेखी करते हुए हिंदी को प्रदेश 2 की कामकाजी भाषा बनाने की नीति अपनाई है और सार्वजनिक तौर पर हिंदी की वकालत करते हुए तत्काल व्यापक जनविरोध कर स्थानीय स्तर पर बोली जाने वाली भाषा को पहले विवादित किया जाएगा और फिर हिंदी को जोड़ा जाएगा।

भारतीय स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर 15 अगस्त 2021 को दिल्ली के लाल किले से भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, ‘‘देश की महान प्रतिभाओं को भाषा के कारण पिंजरे में बंद कर दिया गया है। लोग अपनी मातृभाषा में आगे बढ़ सकते हैं। यदि कोई व्यक्ति अपनी मातृभाषा पढ़कर आगे बढ़ता है तो उसकी प्रतिभा के साथ न्याय होगा।’’ वहीं इसी समय पर प्रदेश 2 में एक मातृभाषा को जबरदस्ती विवादित बनाने और खत्म करने की कोशिश की जा रही है। दूसरे शब्दों में, जिस देश की भाषा हिंदी है, वहीं के प्रधानमंत्री जहां उन देशों में बोली जाने वाली मातृभाषाओं को बढ़ावा देने पर जोर दे रहे हैं, वहीं बहुसंख्यक मैथिली भाषी क्षेत्रों के जनप्रतिनिधियों द्वारा दूसरे की मातृभाषा के प्रति मोह किसी विडंबना से कम नहीं है। 
 
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आगे का रास्ता

आखिर अंग्रेजी और नेपाली भाषा का निर्विवाद रूप से इस्तेमाल हो रहे प्रदेश 2 में स्वदेशी भाषा को जानबूझकर विवादास्पद क्यों बनाया गया? कई सवाल हैं। इसका न केवल जवाब बल्कि व्यावहारिक समाधान भी खोजना महत्वपूर्ण है।

नेपाल का संविधान (वि.सं. 2072) नेपाल में बोली जाने वाली सभी मातृभाषाओं को राष्ट्रीय भाषाओं (अनुच्छेद 6) के रूप में मान्यता देता है। हालांकि, सरकारी कामकाजी भाषा (अनुच्छेद 7) केवल देवनागरी लिपि में लिखी गई नेपाली भाषा को मान्यता देती है। इसी तरह, नेपाली भाषा के अलावा, एक प्रदेश अपने राज्य के अंदर अधिकांश लोगों द्वारा बोली जाने वाली एक या एक से अधिक राष्ट्रीय भाषाओं को प्रदेश कानून के मुताबिक प्रदेश सरकारी कामकाजी भाषा निर्धारित कर सकती है। धारा 7 की उप-धारा 2 में ऐसा प्रावधान किया गया है, जबकि उपधारा 3 में भाषा संबंधी अन्य मामले नेपाल सरकार द्वारा भाषा आयोग की सिफारिश पर तय किए जाएंगे। यहां भले ही संविधान ने राज्य सरकार को शक्ति दी हो, लेकिन राज्य उस अधिकार का प्रयोग नहीं कर पायी है और भाषा आयोग की प्रगति बहुत अधिक नहीं हुई। इसलिए संविधान द्वारा दी गई शक्ति का उपयोग करते हुए प्रदेश 2 की सरकार को मैथिली को प्रदेश की आधिकारिक भाषा के रूप में निर्धारित करने के लिए जल्द से जल्द कानून बनाना चाहिए।

यह सर्वविदित है कि मैथिली, प्रदेश 2 में सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा और देश की दूसरी सबसे बड़ी भाषा है, जिसे राज्य द्वारा हमेशा उपेक्षित किया गया। यद्यपि मातृभाषा में पठनपाठन के लिए मैथिली भाषा का पाठ्यक्रम तैयार और कार्यान्वित किया गया है, लेकिन स्कूलों में इसका कार्यान्वयन अभी भी कमजोर है।

समय के साथ मैथिली भाषा को बदलना जरूरी है। जो लोग मैथिली भाषा में समान हिस्सेदारी की कमी के कारण पीछे रह गए हैं, उन्हें अपने स्वर/टोन को व्याकरण में शामिल करके मैथिली के प्रचलन को बढ़ाना चाहिए। मैथिली भाषा से संबंधित संघ-संगठनों के पदों में सभी जातियों को समान रूप से शामिल किया जाना चाहिए और संगठनों को समावेशी बनाना चाहिए। विभिन्न पुरस्कार कोषों से पुरस्कार वितरण करते समय सभी क्षेत्रों और समुदायों के मैथिली साहित्यकारों को उचित स्थान दिया जाना चाहिए। वर्तमान में लागू की जा रही मैथिली भाषा के पाठ्यक्रम को संशोधित किया जाना चाहिए ताकि राजा सालहेश, दीनारामभद्री और अन्य सहित विभिन्न समुदाय के गणमान्य व्यक्तियों के इतिहास और जीवनी को शामिल किया जा सके। इसके लिए सभी मैथिली अनुयायियों, संघ-संस्थाओं, प्रचारकों, लेखकों, भाषाविदों, जनप्रतिनिधियों, पत्रकारों, बुद्धिजीवियों आदि को दिल से काम करना पड़ेगा।

निष्कर्ष


अगर माँ के कुछ बच्चे गलती करते हैं या गलत हो जाते हैं, तो उस बूरे बच्चे को सुधारने की कोशिश करना चाहिए, न कि माँ का नाम बदलना चाहिए और न ही माँ को बदलना चाहिए। मैथिली को प्रदेश २ की कार्यकारी भाषा बनाओ, हिन्दी को नहीं। यदि हिन्दी को जबरन बनाया जाता है तो संबंधित पक्ष को व्यापक जन विरोध का सामना करना पड़ेगा। यह राज्य को एक नए संघर्ष में धकेलने के समान होगा।

मैथिली सिर्फ एक भाषा नहीं बल्कि एक सभ्यता भी है। यह एक दर्शन है। यह विश्व अध्यात्म का केंद्र है। यह एक प्राचीन संस्कृति है जिसका हजारों साल का अपना इतिहास है। जिसकी अपनी समृद्ध लिपि है। यह राज्य की अमूल्य धरोहर है। इसकी रक्षा और प्रचार-प्रसार करना हम सबका दायित्व है। अगर हमें अपनी भाषा, संस्कृति और पहचान पर गर्व नहीं होगा तो चाहे हम दुनिया में कहीं भी जाएं, हम अपनी कोई भी मूल पहचान नहीं देखेंगे और हमेशा तिरस्कृत रहेंगे। 
 
मैथिली भाषा सम्बन्धी नयी उम्मीदमे प्रकाशित लेख
- कुंदन कुमार कर्ण

(उपर्युक्त लेखक के अपने विचार हैं) 
 

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