लगाबऽ दाउ पर पड़ै परान बन्धु मनुष बनै तखन सफल महान बन्धु बड़ी कठिनसँ फूल बागमे खिलै छै गुलाब सन बनब कहाँ असान बन्धु जबाब ओकरासँ आइ धरि मिलल नै नयन सवाल केने छल उठान बन्धु हजार साल बीत गेल मौनतामे पढ़ब की आब बाइबल कुरान बन्धु लहास केर ढेरपर के ठाढ़ नै छै कते करब शरीर पर गुमान बन्धु 1212-1212-1212-2 © कुन्दन कुमार कर्ण
बहर आ काफिया गजलक अनिवार्य तत्व छै । गीतक रचना लेल एकर अनिवार्यता नै रहै छै । तथापि, ढेर रास हिन्दी फिल्मक (बालिउडक) गीत सभमे एकर निर्वहन सुन्दर तरिकासँ कएल गेल भेटत । उदाहरणस्वरूप देखू ई दू टा गीतकें:
1#
बहर-ए-मुतकारिब मुसम्मन सालिम (122 x 4)
बहुत ख़ूबसूरत गज़ल लिख रहा हूँ
तुम्हे देखकर आजकल लिख रहा हूँ
मिले कब कहाँ, कितने लम्हे गुजारे
मैं गिन गिन के वो सारे पल लिख रहा हूँ
तुम्हारे जवां ख़ूबसूरत बदन को
तराशा हुआ इक महल लिख रहा हूँ
न पूछों मेरी बेकरारी का आलम
मैं रातों को करवट बदल लिख रहा हूँ
तक्तीअः
बहुत ख़ू / बसूरत / गज़ल लिख / रहा हूँ
122 / 122 / 122 / 122
तुम्हे दे / खकर आ / जकल लिख / रहा हूँ
122 / 122 / 122 / 122
मिले कब / कहाँ कित / ने लम्हे / गुजारे
122 / 122 / 122 / 122
मैं गिन गिन / के वो सा / रे पल लिख / रहा हूँ
122 / 122 / 122 / 122
तुम्हारे / जवां ख़ू / बसूरत / बदन को
122 / 122 / 122 / 122
तराशा / हुआ इक / महल लिख / रहा हूँ
122 / 122 / 122 / 122
न पूछों / मेरी बे / करारी / का आलम
122 / 122 / 122 / 122
मैं रातों / को करवट / बदल लिख / रहा हूँ
122 / 122 / 122 / 122
यही आग़ाज़ था मेरा यही अंजाम होना था
मुझे बरबाद होना था मुझे नाकाम होना था
मुझे तक़दीर ने तक़दीर का मारा बना डाला
चमकते चाँद को टूटा.........
तक्तीअः
चमकते चाँ/द को टूटा/ हुआ तारा/ बना डाला
122 2/1 2 22/ 12 22/12 22
मेरी आवा/रगी ने मुझ/को आवारा/ बना डाला
12 22/12 2 2/ 1 222/12 22
बड़ा दिलकश/ बड़ा रंगी/न हैं ये शह/र कहते हैं
12 22/12 22/ 1 2 2 2/1 22 2
यहाँ पर हैं/ हज़ारों घर/ घरों में लो/ग रहते हैं
12 2 2/122 2/ 12 2 2/1 22 2
मुझे इस शह/र ने गलियों/ का बंजारा/ बना डाला
12 2 2/1 2 22/ 1 222/12 22
मैं इस दुनिया/ को अक्सर दे/खकर हैरा/न होता हूँ
1 2 22/1 22 2/ 12 22/12 22
न मुझसे बन/ सका छोटा/ सा घर दिन रा/त रोता हूँ
1 22 2/12 22/ 1 2 2 2/1 22 2
खुदाया तूँ/ने कैसे ये/ जहां सारा/ बना डाला
122 2/1 22 2/ 12 22/12 22
मेरे मालिक/ मेरा दिल क्यूँ/ तड़पता है/ सुलगता है
12 22/12 2 2/ 122 2/122 2
तेरी मर्ज़ी/ तेरी मर्ज़ी/ पे किसका ज़ो/र चलता है
12 22/12 22/ 1 22 2/1 22 2
किसी को गुल/ किसी को तू/ने अंगारा/ बना डाला
12 2 2/12 2 2/ 1 222/12 22
यही आग़ा/ज़ था मेरा/ यही अंजा/म होना था
12 22/1 2 22/ 12 22/1 22 2
मुझे बर्बाद होना था मुझे नाकाम होना था
12 22/1 22 2/ 12 22/1 22 2
मुझे तक़दी/र ने तक़दी/र का मारा/ बना डाला
12 22/1 2 22/ 1 2 22/12 22
1#
फिल्म: शिकारी (2000)
शाइर: समीर
गायक: कुमार सानु
संगीतकार: आदेश श्रीवास्तव
मुख्य कलाकारः गोविन्दा, करिशमा कपुर
शाइर: समीर
गायक: कुमार सानु
संगीतकार: आदेश श्रीवास्तव
मुख्य कलाकारः गोविन्दा, करिशमा कपुर
बहर-ए-मुतकारिब मुसम्मन सालिम (122 x 4)
बहुत ख़ूबसूरत गज़ल लिख रहा हूँ
तुम्हे देखकर आजकल लिख रहा हूँ
मिले कब कहाँ, कितने लम्हे गुजारे
मैं गिन गिन के वो सारे पल लिख रहा हूँ
तुम्हारे जवां ख़ूबसूरत बदन को
तराशा हुआ इक महल लिख रहा हूँ
न पूछों मेरी बेकरारी का आलम
मैं रातों को करवट बदल लिख रहा हूँ
तक्तीअः
बहुत ख़ू / बसूरत / गज़ल लिख / रहा हूँ
122 / 122 / 122 / 122
तुम्हे दे / खकर आ / जकल लिख / रहा हूँ
122 / 122 / 122 / 122
मिले कब / कहाँ कित / ने लम्हे / गुजारे
122 / 122 / 122 / 122
मैं गिन गिन / के वो सा / रे पल लिख / रहा हूँ
122 / 122 / 122 / 122
तुम्हारे / जवां ख़ू / बसूरत / बदन को
122 / 122 / 122 / 122
तराशा / हुआ इक / महल लिख / रहा हूँ
122 / 122 / 122 / 122
न पूछों / मेरी बे / करारी / का आलम
122 / 122 / 122 / 122
मैं रातों / को करवट / बदल लिख / रहा हूँ
122 / 122 / 122 / 122
2#
फिल्म: आवारगी (1990)
गीतकार: आनंद बक्षी
गायक: गुलाम अली
संगीतकार: अनु मालिक
मात्राक्रमः 1222-1222-1222-1222 (बहर-ए-हजज)
चमकते चाँद को टूटा हुआ तारा बना डाला
मेरी आवारगी ने मुझको आवारा बना डाला
बड़ा दिलकश बड़ा रंगीन हैं ये शहर कहते हैं
यहाँ पर हैं हज़ारों घर घरों में लोग रहते हैं
मुझे इस शहर ने गलियों का बंजारा बना डाला
चमकते चाँद को टूटा.........
मैं इस दुनिया को अक्सर देखकर हैरान होता हूँ
न मुझसे बन सका छोटा सा घर दिन रात रोता हूँ
खुदाया तूं ने कैसे ये जहां सारा बना डाला
चमकते चाँद को टूटा.........
मेरे मालिक मेरा दिल क्यूँ तड़पता है सुलगता है
तेरी मर्ज़ी तेरी मर्ज़ी पे किसका ज़ोर चलता है
किसी को गुल किसी को तूने अंगारा बना डाला
चमकते चाँद को टूटा.........
गीतकार: आनंद बक्षी
गायक: गुलाम अली
संगीतकार: अनु मालिक
मात्राक्रमः 1222-1222-1222-1222 (बहर-ए-हजज)
चमकते चाँद को टूटा हुआ तारा बना डाला
मेरी आवारगी ने मुझको आवारा बना डाला
बड़ा दिलकश बड़ा रंगीन हैं ये शहर कहते हैं
यहाँ पर हैं हज़ारों घर घरों में लोग रहते हैं
मुझे इस शहर ने गलियों का बंजारा बना डाला
चमकते चाँद को टूटा.........
मैं इस दुनिया को अक्सर देखकर हैरान होता हूँ
न मुझसे बन सका छोटा सा घर दिन रात रोता हूँ
खुदाया तूं ने कैसे ये जहां सारा बना डाला
चमकते चाँद को टूटा.........
मेरे मालिक मेरा दिल क्यूँ तड़पता है सुलगता है
तेरी मर्ज़ी तेरी मर्ज़ी पे किसका ज़ोर चलता है
किसी को गुल किसी को तूने अंगारा बना डाला
चमकते चाँद को टूटा.........
यही आग़ाज़ था मेरा यही अंजाम होना था
मुझे बरबाद होना था मुझे नाकाम होना था
मुझे तक़दीर ने तक़दीर का मारा बना डाला
चमकते चाँद को टूटा.........
तक्तीअः
चमकते चाँ/द को टूटा/ हुआ तारा/ बना डाला
122 2/1 2 22/ 12 22/12 22
मेरी आवा/रगी ने मुझ/को आवारा/ बना डाला
12 22/12 2 2/ 1 222/12 22
बड़ा दिलकश/ बड़ा रंगी/न हैं ये शह/र कहते हैं
12 22/12 22/ 1 2 2 2/1 22 2
यहाँ पर हैं/ हज़ारों घर/ घरों में लो/ग रहते हैं
12 2 2/122 2/ 12 2 2/1 22 2
मुझे इस शह/र ने गलियों/ का बंजारा/ बना डाला
12 2 2/1 2 22/ 1 222/12 22
मैं इस दुनिया/ को अक्सर दे/खकर हैरा/न होता हूँ
1 2 22/1 22 2/ 12 22/12 22
न मुझसे बन/ सका छोटा/ सा घर दिन रा/त रोता हूँ
1 22 2/12 22/ 1 2 2 2/1 22 2
खुदाया तूँ/ने कैसे ये/ जहां सारा/ बना डाला
122 2/1 22 2/ 12 22/12 22
मेरे मालिक/ मेरा दिल क्यूँ/ तड़पता है/ सुलगता है
12 22/12 2 2/ 122 2/122 2
तेरी मर्ज़ी/ तेरी मर्ज़ी/ पे किसका ज़ो/र चलता है
12 22/12 22/ 1 22 2/1 22 2
किसी को गुल/ किसी को तू/ने अंगारा/ बना डाला
12 2 2/12 2 2/ 1 222/12 22
यही आग़ा/ज़ था मेरा/ यही अंजा/म होना था
12 22/1 2 22/ 12 22/1 22 2
मुझे बर्बाद होना था मुझे नाकाम होना था
12 22/1 22 2/ 12 22/1 22 2
मुझे तक़दी/र ने तक़दी/र का मारा/ बना डाला
12 22/1 2 22/ 1 2 22/12 22
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