लगाबऽ दाउ पर पड़ै परान बन्धु मनुष बनै तखन सफल महान बन्धु बड़ी कठिनसँ फूल बागमे खिलै छै गुलाब सन बनब कहाँ असान बन्धु जबाब ओकरासँ आइ धरि मिलल नै नयन सवाल केने छल उठान बन्धु हजार साल बीत गेल मौनतामे पढ़ब की आब बाइबल कुरान बन्धु लहास केर ढेरपर के ठाढ़ नै छै कते करब शरीर पर गुमान बन्धु 1212-1212-1212-2 © कुन्दन कुमार कर्ण
गीत - अगर मुझ से मुहब्बत है......
फिल्म - आप की परछाइयां (१९६४)
गीतकार - राजा मेहदी अली खान
गायिका - लता मंगेश्वर
संगीतकार - मदन मोहन
1222 - 1222 - 1222 - 1222
(बहर - हजज मुसम्मन सालिम)
अगर मुझसे मुहब्बत है मुझे सब अपने ग़म दे दो
इन आँखों का हर इक आँसू मुझे मेरी क़सम दे दो
अगर मुझसे मुहब्बत है.......
तुम्हारे ग़म को अपना ग़म बना लूँ तो क़रार आए
तुम्हारा दर्द सीने में छुपा लूँ तो क़रार आए
वो हर शय जो तुम्हें दुःख दे मुझे मेरे सनम दे दो
अगर मुझसे मुहब्बत है........
शरीक ए ज़िंदगी को क्यूँ शरीक-ए-ग़म नहीं करते
दुखों को बाँट कर क्यूँ इन दुखों को कम नहीं करते
तड़प इस दिल की थोड़ी सी मुझे मेरे सनम दे दो
अगर मुझसे मुहब्बत है.......
इन आँखों में ना अब मुझको कभी आँसूँ नज़र आए
सदा हँसती रहे आँखें सदा ये होंठ मुस्काये
मुझे अपनी सभी आहें सभी दर्द ओ अलम दे दो
अगर मुझसे मुहब्बत है मुझे सब अपने ग़म दे दो
इन आँखों का हर इक आँसू मुझे मेरी क़सम दे दो
अगर मुझसे मुहब्बत है.....
तक्तीअ
अगर मुझसे/ मुहब्बत है/ मुझे सब अप/ ने ग़म दे दो
इनाँखों का/ हरिक आँसू/ मुझे मेरी/ क़सम दे दो
तुम्हारे ग़म/ को अपना ग़म/ बना लूँ तो/ क़राराए
तुम्हारा द/ र्द सीने में/ छुपा लूँ तो/ क़राराए
वो हर शय जो/ तुम्हें दुख दे/ मुझे मेरे/ सनम दे दो
शरीके ज़िं/ दगी को क्यूँ/ शरीके ग़म/ नहीं करते
दुखों को बाँ/ट कर क्यूँ इन/ दुखों को कम/ नहीं करते
तड़प इस दिल/ की थोड़ी सी/ मुझे मेरे/ सनम दे दो
इनाँखों में/ ना अब मुझको/ कभी आँसूँ/नज़राए
सदा हँसती/ रहे आँखें/ सदा ये हों/ ठ मुस्काये
मुझे अपनी/ सभी आहें/ सभी दर्दो/ अलम दे दो
फिल्म - आप की परछाइयां (१९६४)
गीतकार - राजा मेहदी अली खान
गायिका - लता मंगेश्वर
संगीतकार - मदन मोहन
1222 - 1222 - 1222 - 1222
(बहर - हजज मुसम्मन सालिम)
अगर मुझसे मुहब्बत है मुझे सब अपने ग़म दे दो
इन आँखों का हर इक आँसू मुझे मेरी क़सम दे दो
अगर मुझसे मुहब्बत है.......
तुम्हारे ग़म को अपना ग़म बना लूँ तो क़रार आए
तुम्हारा दर्द सीने में छुपा लूँ तो क़रार आए
वो हर शय जो तुम्हें दुःख दे मुझे मेरे सनम दे दो
अगर मुझसे मुहब्बत है........
शरीक ए ज़िंदगी को क्यूँ शरीक-ए-ग़म नहीं करते
दुखों को बाँट कर क्यूँ इन दुखों को कम नहीं करते
तड़प इस दिल की थोड़ी सी मुझे मेरे सनम दे दो
अगर मुझसे मुहब्बत है.......
इन आँखों में ना अब मुझको कभी आँसूँ नज़र आए
सदा हँसती रहे आँखें सदा ये होंठ मुस्काये
मुझे अपनी सभी आहें सभी दर्द ओ अलम दे दो
अगर मुझसे मुहब्बत है मुझे सब अपने ग़म दे दो
इन आँखों का हर इक आँसू मुझे मेरी क़सम दे दो
अगर मुझसे मुहब्बत है.....
तक्तीअ
अगर मुझसे/ मुहब्बत है/ मुझे सब अप/ ने ग़म दे दो
इनाँखों का/ हरिक आँसू/ मुझे मेरी/ क़सम दे दो
तुम्हारे ग़म/ को अपना ग़म/ बना लूँ तो/ क़राराए
तुम्हारा द/ र्द सीने में/ छुपा लूँ तो/ क़राराए
वो हर शय जो/ तुम्हें दुख दे/ मुझे मेरे/ सनम दे दो
शरीके ज़िं/ दगी को क्यूँ/ शरीके ग़म/ नहीं करते
दुखों को बाँ/ट कर क्यूँ इन/ दुखों को कम/ नहीं करते
तड़प इस दिल/ की थोड़ी सी/ मुझे मेरे/ सनम दे दो
इनाँखों में/ ना अब मुझको/ कभी आँसूँ/नज़राए
सदा हँसती/ रहे आँखें/ सदा ये हों/ ठ मुस्काये
मुझे अपनी/ सभी आहें/ सभी दर्दो/ अलम दे दो
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें