लगाबऽ दाउ पर पड़ै परान बन्धु मनुष बनै तखन सफल महान बन्धु बड़ी कठिनसँ फूल बागमे खिलै छै गुलाब सन बनब कहाँ असान बन्धु जबाब ओकरासँ आइ धरि मिलल नै नयन सवाल केने छल उठान बन्धु हजार साल बीत गेल मौनतामे पढ़ब की आब बाइबल कुरान बन्धु लहास केर ढेरपर के ठाढ़ नै छै कते करब शरीर पर गुमान बन्धु 1212-1212-1212-2 © कुन्दन कुमार कर्ण
प्रस्तुत अछि न्यून श्रवणशक्ति एवम् श्रवणविहिन व्यक्ति सभ धरि गजल पहुँचेबाक उद्देशयसँ सम्भवत पहिल बेर प्रयोगक रूपमे कुन्दन कुमार कर्णक कहल एक नेपाली गजलक मतला आ एक टा शेर सांकेतिक भाषामे । जकरा प्रस्तुत केने छथि 'राष्ट्रिय सांकेतिक भाषा दोभाषे संघ', नेपालक महासचिव सन्तोषी घिमिरे । आबैवला दिनमे किछु मैथिली गजल सेहो सांकेतिक भाषामे परसबाक प्रयास रहत ।
सांकेतिक भाषामे गजल कहैत सन्तोषी घिमिरे
संतोषी घिमिरेक संग कुन्दन कुमार कर्ण |
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